
रिपोर्ट/हैदर अली
नियम फाइलों में कैद,‘इस्वा’ का नेटवर्क बेखौफ! बरेली से बदायूं तक स्वास्थ्य विभाग पर गंभीर आरोप
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की नियमावली स्पष्ट है—कोई भी सरकारी डॉक्टर या अधिकारी बिना विभागीय अनुमति किसी गैर-सरकारी संस्था में पद नहीं संभाल सकता। लेकिन बरेली मंडल में यह नियम कागजों तक सिमटा नजर आ रहा है। बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत और रामपुर तक एक ऐसा कथित नेटवर्क सक्रिय बताया जा रहा है, जो खुलेआम नियमों को दरकिनार कर रहा है।
आरोप है कि प्राइवेट मुस्लिम डॉक्टर्स के संगठन ‘इंटेलेक्चुअल सोशल वेलफेयर एसोसिएशन (इस्वा)’ में स्वास्थ्य विभाग के कई सरकारी डॉक्टर और अधिकारी पदाधिकारी बने हुए हैं, जबकि इसकी कोई वैधानिक अनुमति विभागीय रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, बरेली को “स्वास्थ्य मंडी” में तब्दील करने की कहानी सिर्फ निजी निवेश की नहीं, बल्कि कथित सांठगांठ की भी है। नियमों के विपरीत बनी इमारतों में निजी अस्पतालों को लाइसेंस, मानकों की अनदेखी और प्रशासनिक चुप्पी—इन सबने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालों की लंबी सूची खड़ी कर दी है।
बताया जा रहा है कि करीब चार साल पहले इस्वा का पंजीकरण हुआ और उसी दौरान संगठन के पदों का बंटवारा भी कर दिया गया। आरोप है कि
बरेली के डिप्टी सीएमओ डॉ. लईक अहमद अंसारी को संगठन का कोषाध्यक्ष
पीलीभीत के डॉक्टर फिरासत हुसैन अंसारी को प्रवक्ता बनाया गया
वह भी बिना किसी सक्षम अधिकारी की अनुमति के।
मामला यहीं खत्म नहीं होता। बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, रामपुर और बरेली में तैनात कई अन्य डॉक्टरों के नाम भी इस संगठन से जोड़े जा रहे हैं। कुछ मामलों में यह भी आरोप है कि सरकारी सेवा में रहते हुए निजी अस्पताल या क्लीनिक का संचालन किया जा रहा है, जो स्वास्थ्य विभाग के नियमों का सीधा उल्लंघन है।
गौरतलब है कि 2023 की सरकारी अधिसूचना में ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ से बचने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। नियमों के उल्लंघन पर पद से हटाने, वेतन कटौती और विभागीय कार्रवाई तक का प्रावधान है। इसके बावजूद अब तक न तो जिला प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट बयान आया है और न ही किसी औपचारिक जांच की घोषणा हुई है।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है.
क्या नियम सिर्फ फाइलों में कैद हैं?
या फिर इस बार स्वास्थ्य विभाग में जवाबदेही तय होगी?
जनहित से जुड़े इन सवालों का जवाब आने वाला वक्त देगा, लेकिन फिलहाल बरेली से उठी यह चिंगारी पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल जरूर छोड़ गई है।
