


बरेली के मिनी बाईपास रोड स्थित खुसरो अस्पताल को सितंबर 2024 में डिप्टी सीएमओ डॉक्टर लईक अहमद ने अनियमितताओं के चलते सील कर दिया था। लेकिन इसी सील बिल्डिंग में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर विश्राम सिंह ने कथित सांठ-गांठ कर उसी परिसर में अन्नपूर्णा हॉस्पिटल के नाम से नया क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट पंजीकरण जारी कर दिया।जब इस गोरखधंधे का खुलासा हुआ तो अपनी तथा डिप्टी सीएमओ डॉक्टर अमित कुमार की गर्दन बचाने के लिए सीएमओ डॉक्टर विश्राम सिंह ने फौरन अन्नपूर्णा हॉस्पिटल का पंजीकरण निरस्त कर दिया। हालांकि सील तोड़कर नये नाम से अस्पताल का पंजीकरण कराने के लिए बिल्डिंग का किराएनामा लिखने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं करवाई गई और न ही बिल्डिंग पर दोबारा सील लगवाई गई। इससे साफ जाहिर है कि नया पंजीकरण जानबूझकर और मिलीभगत से जारी किया गया था।सूत्रों का दावा है कि सीएमओ डॉक्टर विश्राम सिंह की शह पर जिले में दर्जनों निजी अस्पताल क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के मानकों को ताक पर रखकर चल रहे हैं। उदाहरणस्वरूप बीसलपुर रोड स्थित लक्ष्य हॉस्पिटल टिनशेड में चल रहा है, फिर भी पंजीकृत है।बीसलपुर चौराहे पर केजीएन सहारा हॉस्पिटल बेसमेंट में संचालित है, इसका भी पंजीकरण सीएमओ कार्यालय से ही हुआ।जिले में ऐसे सैकड़ों अस्पताल खुले आम नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं, लेकिन सुविधा शुल्क के आगे सीएमओ डॉक्टर विश्राम सिंह मौन हैं।विभागीय सूत्रों की मानें तो कुछ दिनों में खुसरो अस्पताल की फाइल फिर खोलकर उसे क्लीन चिट दे दी जाएगी और दोबारा संचालन की अनुमति मिल जाएगी।प्रश्न यह है कि जो अधिकारी सील तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय खुद मिलीभगत कर नया पंजीकरण जारी करता हो और मानकविहीन अस्पतालों को संरक्षण देता हो, क्या उसके खिलाफ उच्च स्तरीय जाँच और निलंबन जैसे कठोर कदम नहीं उठने चाहिएजब तक स्वास्थ्य विभाग में इस स्तर की भ्रष्टाचार और मिलीभगत चलती रहेगी, मरीजों की जान हमेशा खतरे में रहेगी।अब प्रकरण में जिले के जिलाधिकारी को भी दखल देना चाहिए क्योंकि एक नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे निजी अस्पताल और क्लीनिक है जो मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर विश्राम सिंह की मेहरबानी से फल-फूल रहे हैं
